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Zero Ka Avishkar Kisne Kiya जीरो की खोज किसने की और कब की

Zero Ka Avishkar Kisne Kiya

लोगों को अपने सही इतिहास का पता करने में बहुत समस्या आती है, अधिकांश व्यक्ति प्राचीन शास्त्रों, व पुस्तकों आदि का अध्ययन नहीं करते, जिस कारण उनके समक्ष किसी भी विषय की सत्यता को लेकर संदेह उत्पन्न हो जाता है। इस कारण वे झूठ को भी सत्य मानने लगते है, यही वजह है कि शून्य के आविष्कार को लेकर भारतीयों के मन में गलत धारणा बन गई है। इतिहास को अगर गलत ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो व सही प्रतीत होने लगता है जिससे आगे चलकर लोग उसे सही मानने लगते है, परंतु झूठ तो झूठ ही होता है न, वह तर्क की कसौटी पर कभी भी खरा नहीं उतर सकता है। लोगो को बताया गया है कि महान गणितज्ञ आर्यभट्ट अथवा ब्रह्मगुप्त ने शून्य का आविष्कार किया, परंतु यह बात सत्य नहीं है। वैदिक सनातन संस्कृति में शून्य का प्रयोग तो सृष्टि उत्पत्ति समय से ही किया जा रहा है, हमारे आर्ष ग्रंथ वेदों में अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित आदि विद्याओं का वर्णन है. जबकि आर्यभट्ट व ब्रह्मगुप्त जैसे गणितज्ञ का जन्म तो 500 -600 ई के आसपास ही हुआ है। इसलिए हम आपको बताते है इसका सही उत्तर क्या है।

वेदों में शून्य(जीरो) का वर्णन स्पष्ट रूप से मिलता है

जीरो या शून्य(zero) का आविष्कार सनातन वैदिक गणित से हुआ है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद में अनेको बार ऐसे मंत्र आते है जिनमें जीरो व शून्य से सम्बंधित आकडा आ जाता है। उदाहरण के लिए वेद मंत्र- शत हस्त समाहर सहस्र हस्तसंकिर।। इसमें शत का अर्थ सौ(100) व सहस्त्र का अर्थ हजार(1000) है, जो कि जीरो(शून्य) से मिलकर ही बनते है।

इसके अलावा यजुर्वेद व मुंडकोपनिषद के इस मंत्र में शतं अर्थात सौ(100) वर्ष तक जीने का आदेश दिया गया है यह मंत्र इस प्रकार है- कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

वेदों के अलावा उपनिषद, दर्शन, उपवेद, रामायण, महाभारत आदि में शून्य प्रयोग का वर्ण पूर्ण रूप से देखने को मिल जाता है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण की कई सहस्र अर्थात कई हजार(1000) सेना संख्या थी और कौरवों की संख्या भी 100 थी। 

मूर्ख व्यक्तियों ने शून्य के बारे में भ्रांति फैला दी है

लोगों के बीच शून्य के आविष्कार को लेकर भ्रांति है, मूर्ख व्यक्तियों ने अफवाह फैला रखी है कि आर्यभट्ट या ब्रह्मगुप्त गणितज्ञ ने शून्य का आविष्कार किया है। यह सरासर गलत जानकारी है, इन विद्वानों ने केवल शून्य अथवा जीरो पर स्वयं की व्याख्या व शोध किया है और इसके प्रयोग को विस्तृत किया है। अगर इन विद्वानों ने शून्य का आविष्कार किया होता तो प्राचीन वैदिक गणित में जीरो का उल्लेख कदापि नहीं मिलता। मूर्खों का कुछ भरोसा नहीं है वो इतिहास को किसी भी तरह गलत बना सकते है, परंतु हमें अपने विवेक से सही गलत की परीक्षा करनी चाहिए। यदि आप भारतीय सनातन की हजारों लाखों वर्ष पुरानी विद्या, शास्त्र, कला, भवन आदि शिक्षा पद्धति का अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे की सृष्टि के आरम्भ से भारत में शून्य का प्रयोग किया जाता रहा है। 

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