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मन को कैसे जीते – मन को एकाग्र करने के उपाय

man ko kaise jeete

मनुष्य के लिए मन व इन्द्रियों को शांत कर जीत लेना सबसे कठिन कार्य है। यह एक अत्यंत परिश्रम वाला मार्ग है, जिस पर चलना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है। शास्त्रों में मन व इन्द्रियों को वश में करने के विभिन्न उपाय बताये है। वेदो से लेकर उपनिषद, गीता, योगदर्शन आदि सभी शास्त्रो में आत्म निय़ंत्रण करने की विधि बतायी गई है।  अब मन व इन्द्रियों को कैसे नियंत्रित करें और इसे शांत करने के उपाय देखते है।

मन को जीतने के लिए-

  • मन जिधर भागे उसे पकड़कर आत्मा के वश मे लाये. इस प्रक्रिया का कई बार अभ्यास करने से एक समय पश्चात मन वश में आ जाता है।
  • इन्द्रियों पर अंकुश लगाना आवश्यक है ताकि मन इधर-उधर न भागे। इसलिए एकांत में जाकर चित्त को वश में करें।
  • विषयों के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न करने से मन संतुलन में आकर शांत हो जाता है।
  • मन को शांत करने में ईश्वर भक्ति परम आवश्यक है इससे मन के विकार मिट जाते है और मन शुद्ध होकर परमेश्वर के ध्यान में लीन हो जाता है।
  • मन को शांत करने में शास्त्रों का स्वाध्याय बहुत ही हितकारी सिद्ध होता है, क्योंकि शास्त्रों में योग विद्या एवं ध्यान करने के अनेक उपाय बताये है जिससे मन की बुराई दूर होकर एकाग्रता बढ़ जाती है।
  • मन को शांत करने में ब्रह्मचर्य का महत्वपूर्ण स्थान है, यह सभी प्रकार की वृत्तियों को रोककर मन को एक दिशा में लगा देता है, जिससे मन भटकता नहीं है।
  • जो व्यक्ति प्रतिदिन योग करता है उसकी सभी इन्द्रियाँ पवित्र हो जाती है जिस कारण उसका मन कामवासना एवं अन्य चीजों के प्रति आकर्षित नहीं होता है।
  • रोज 3-4 मिनट बाह्य व अन्तः कुम्भक प्राणायाम करने से मन को वश में किया जाता है. यह प्राणायाम ऊर्जा का संचार शरीर के ऊपरी दिशा अर्थात मस्तिष्क की ओर करता है जिससे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा मन को वश में कर लेती है। 
  • भोजन का मन में आने वाले विचारों पर सीधा प्रभाव पड़ता है, सात्विक भोजन ग्रहण करने से मन की चंचलता दूर हो जाती है. जिससे यह मन आत्मा के अधीन रहकर कार्य करता है।
  • चकाचौंध के कारण ही मन भटकता रहता है इसलिए चकाचौंध भरी दुनिया से दूर रहने वाले व्यक्ति अपने मन पर सरलता से कंट्रोल पा लेते है।

गीता के अनुसार मन को वश में करने का उपाय

मन जिधर भागे उसे पकड़कर आत्मा के वश मे लाये

भगवान श्री कृष्ण गीता के 6 अध्याय श्लोक 26 के माध्यम से मन को वश में करने का सूत्र बताते है-

“यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्। ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।। 6.26।।”

अर्थ- यह चंचल मन अपनी अस्थिरता के कारण जिधर-जिधर निकलकर भागे, उधर-उधर से इसे पकड़कर आत्मा के वश में लावे।।

मनुष्य का मन बहुत ही चंचल है, लालच के कारण यह प्रत्येक क्षण विषय वासनाओ के भोग की तरफ आकर्षित रहता है। इसलिए अभ्यास द्वारा इसे अपनी आत्मा के वश में किया जा सकता है।

एकांत में जाकर चित्त को वश में करें

मन को एकाग्र व शांत करने का अन्य उपाय श्री कृष्ण ने गीता अध्याय 6.10 के माध्यम से कहा है कि-

“योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः। एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः।। 6.10।।”

कृष्ण कहते है कि एक योगी एकांत वास(जगह) में अकेला रहकर कामना रहित(किसी वस्तु प्राप्ति इच्छा के बिना) अपने चित्त एवं आत्मा को वश में करके सदा एकाग्र रहता है।

अर्थात जो व्यक्ति बिना किसी इच्छा पूर्ति  की भावना से एकांत स्थान पर रहकर स्वयं के शरीर व आत्मा को साधने(नियंत्रित) करने का प्रयास करता है उसका मन व इन्द्रियां उसके नियंत्रण में आ जाते है जिससे वह व्यक्ति अपनी आत्मा को एकाग्र कर लेता है।

इन्द्रियों पर अंकुश लगाना आवश्यक है

मनुष्य का मन इन्द्रियों के अधीन होकर कार्य करता है। इन्द्रियां जैसा देखती है, स्पर्श करती है, सुनती है, स्वाद लेती है, सुगंध लेती है उसी के अनुसार मन क्रिया व व्यवहार करता है। इन्द्रियों में दोष उत्पन्न होने से अविद्या का जन्म होता है, फलस्वरूप शरीर में रजोगुण की प्रधानता बढ़ जाती है। रजो गुण मनुष्य को आलसी व प्रमादी बनाता है. रजो गुण के कारण ही मनुष्य में भोग वासना की इच्छा प्रबल होती जाती है। 

इन्द्रियों पर अंकुश लगाने का सबसे सरल उपाय योग विद्या है। योग के द्वारा शरीर की सभी बुरी वृत्तियों को रोका जा सकता है। 

महर्षि पतंजलि के अनुसार मन को एकाग्र करने का तरीका

महर्षि पतंजलि योग दर्शन में लिखते है कि- “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।।” 

अर्थात योग के द्वारा मनुष्य अपने चित्त की वृत्तियों व वासनाओं को वश में कर लेता है। जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है उसे जितेन्द्रिय पुरुष कहते है।  इसलिए अष्टांग योग, सतत प्रयास एवं दृढ़ संकल्प शक्ति से व्यक्ति अपनी सभी इन्द्रियों को वश में कर मन को जीत लेता है, ऐसा व्यक्ति योगी हो जाता है।

विषयों के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न करने से

वैराग्य का अर्थ है विवेक का जग जाना। एक वैरागी व्यक्ति के लिए मन को जीत लेना बड़ा ही सरल कार्य है। वैरागी अपनी बुद्धि को प्रयोग कर विवेकपूर्वक सही-गलत में फर्क करना जानता है, साथ ही वह व्यक्ति विषयों भोग के जाल में नहीं फंसता है। इसी कारण वैरागी व्यक्ति का मन एवं इन्द्रियां उसके अधीन रहते है तथा वह व्यक्ति शांत रहकर परमानंद की अनुभूति करता है। साधारण व्यक्ति प्रत्येक क्षण भोग विषयों के बारे में चिंतन करता रहता है, कामवासना उसे चारों ओर घेर लेती है। परंतु एक वैरागी कामवासना की माया को अपने विवेक से काट देता है और हमेशा के लिए विषयों की आसक्ति(lust) से छूट जाता है। 

ईश्वर की भक्ति करना

वह ईश्वर परम दयालु है, उसकी भक्ति करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। इस संसार में ईश्वर भक्ति से बढ़कर अन्य कोई दूसरा परमआनंद का रास्ता नहीं है। जो व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास कर उसकी अनन्या आराधना करता है, भक्ति रस के कारण उस व्यक्ति की इंद्रियां उसके नियंत्रण में आ जाती है एवं उसका मन शांत व एकाग्र हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का मन उसकी आत्मा के वश में रहकर कार्य करता है। चूंकि, मनुष्य के शरीर का निर्माण ईश्वर द्वारा किया गया है, अतः जब कोई मनुष्य अपने आपको उस ईश्वर को समर्पित कर देता है, तो वह परम कृपालु भगवन अपने भक्त पर असीम कृपा करता है। इस प्रकार भक्ति मार्ग पर चलने वाला मनुष्य का मन सुख-दुख, सर्दी-गर्मी, एवं अन्य किसी भी परिस्थिति में नहीं भटकता है। 

यह भी पढ़े- ईश्वर क्या है, कौन है

शास्त्रों का स्वाध्याय करना

मन को वश में कर शांत और एकाग्र करने के लिए शास्त्रों का अध्ययन करना परम आवश्यक है। क्योंकि वेद, उपनिषद, दर्शन, वेदांत, योग, सांख्य, आयुर्वेद, गीता आदि शास्त्रों में अनंत विद्या का भंडार उपस्थित है। इन शास्त्रों को पढ़ने मात्र से मनुष्य का विवेक जग जाता है और उसका इन्द्रिय भोग वासना व मन शांत होने लगते है।

शास्त्रों में आत्म नियंत्रण विधि के अनेक तरीके दिये गये है जिनके द्वारा मनुष्य अपने सत्व गुण को बढ़ाकर मन एवं इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर सकता है। गीता में श्री कृष्ण ने कहा  है कि मनुष्य का मन उसका मित्र भी है और शत्रु भी।। अर्थात यदि मनुष्य अपने मन पर अंकुश लगा ले तो व मित्र की भांति कार्य करता है, किन्तु अगर व्यक्ति मन के अधीन हो कर कार्य करे तो मन शत्रु के समान कार्य करता है।

ब्रह्मचर्य का पालन करना

मन तथा इन्द्रियों पर संयम(Control) का अभ्यास करते हुए वीर्य रक्षण करना एवं उस परमैश्वर्य युक्त ब्रह्म की उपासना करना ब्रह्मचर्य है, किन्तु इस पथ पर चलना अत्यंत कठिन कार्य होता है। ब्रह्मचर्य में व्यक्ति को कामवासना व विषयों के भोग का मन व विचारों से पूर्णतः त्याग करना होता है, उसे संकल्प शक्ति के द्वारा सभी प्रकार की आसक्ति(इच्छा), मोह, राग, द्वेष का त्याग करना होता है। 

ब्रह्मचर्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन प्रभु की उपासना व योग करना आवश्यक होता है। क्योंकि ईश्वर भक्ति एवं योग करने से रजो तथा तमो का गुण का नाश हो जाता है एवं सत्व गुण प्रधान होता है। जिस कारण मनुष्य के भीतर विषय भोग के प्रति आकर्षण टूट जाता है। जब मनुष्य इन्द्रियों को वश में करने का अभ्यास करते हुए वीर्य रक्षा करता है तो उसका  वीर्य ऊर्ध्वगमन(नीचे मूलाधार चक्र से ऊपर मस्तिष्क की ओर आज्ञा चक्र तक) होने लगता है। जिससे शरीर बलवान, निरोगी एवं तेजस्वी हो जाता है और मन व सभी इन्द्रियाँ वश में आकर शांत व एकाग्र हो जाती है।

किन्तु, ब्रह्मचर्य अत्यंत कठिन मार्ग है, साधारण व्यक्ति इस पथ पर ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता क्योंकि संसार का आकर्षण एवं शरीर की कामवासना उसे अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है जिस कारण उसका ब्रह्मचर्य व्रत टूट जाता है।

प्रतिदिन योग करना

प्रतिदिन योग करने के अनेक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ है, योग के द्वारा मनुष्य अपने शरीर, मन व इन्द्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है। योग का उद्देश्य मनुष्य के दुखों को दूर करना एवं, शांतिपूर्ण जीवन की स्थापना करना है। अष्टांग योग के माध्यम से व्यक्ति अपनी सभी कर्म इन्द्रियों व ज्ञान इन्द्रियों पर विजय पा लेता है. जिससे उसका मन उसकी आत्मा के वश में आ जाता है। ऐसे पुरुष को जितेन्द्रिय कहते है।

साधारणतः मनुष्य का मन ही व्यक्ति को सांसारिक मायाजाल में धकेलता है। वस्तुओं के प्रति आकर्षण एवं देह कामवासना असंयमी मन के लक्षण है। यदि कोई व्यक्ति योग को अपने जीवन का अंग बना लेता है और अनासक्त योग(विषयों के प्रति वैराग्य) के मार्ग पर चलता है तो वह व्यक्ति अवश्य ही अपने मन को वश में कर लेता है. और सदा शांत एवं एकाग्र चित्त रहकर समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।

यह भी पढ़े- योग क्या है एवं इसके लाभ

बाह्य व अन्तः कुम्भक प्राणायाम करे

प्राणायाम योग विद्या का एक अंग है. इसमे प्राण को अपने वश में करने का अभ्यास किया जाता है। चूंकि, प्राण ही मनुष्य के जीवन का आधार है, प्राण के कारण ही मनुष्य व अन्य जीवों के भीतर जीवन चल रहा है। योग में प्राणायाम के द्वारा श्वास के आदान प्रदान पर नियंत्रण किया जाता है।

शरीर में उपस्थित प्राण को विशेष अभ्यास द्वारा कुछ समय के लिए क्रमशः बाहर व भीतर रोकने से यह वश में आ जाता है। जिससे मनुष्य का मन व इन्द्रियों वश में आकर शांत हो जाते है और वह व्यक्ति मन को जीत कर जितेन्द्रिय हो जाता है। 

प्राणायाम में जब श्वास को बाहर फेंक कर रोकते है तो इसे बाह्य कुंभक प्राणायाम तथा जब श्वास भरकर भीतर की ओर रोकते है तो अन्तः कुम्भक प्राणायाम के नाम से जाना जाता है। अगर प्राणायाम करते समय तीन बंध मूल, उड्डियान व जालंधर बंध लगा लिया जाये तो मन को जीतने में अत्यंत लाभकारी परिणाम देखने को मिलते है।

सात्विक भोजन ग्रहण करें

मन को एकाग्र करने के लिए भोजन का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। ऋग्वेद के उपवेद आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के भीतर तीन तत्व- सत्व, रज और तम गुण विराजमान होते है। इन तीनो मे सत्व गुण सर्वश्रेष्ठ होता है। प्रत्येक खाद्य पदार्थ के गुण-धर्म अथवा प्रवृत्ति भिन्न प्रकार होती है। 

जो व्यक्ति मांसाहार, दैनिक आवश्यकता से अधिक ज्यादा तीखे, खट्टे, अधिक लहसुन प्याज व मसाले युक्त भोजन ग्रहण करते है उनके शरीर में रजो गुण की मात्रा बढ़ जाती है। जिस कारण ऐसे व्यक्ति का मन चंचल हो जाता है और बार-बार भोग वासना के प्रति भटकता है। 

परंतु जो व्यक्ति साधारण खाद्य पदार्थ- हरी सब्जियां, फल, दुग्ध, घी, खीर, आदित सात्विक भोजन खाते है उनके शरीर में सत्व गुण की वृद्धि हो जाती है और  उस व्यक्ति की इन्द्रियाँ उस के नियंत्रण में रहती है। जिससे मन शांत व एकाग्र बना रहता है और बुद्धि भी साधारण मनुष्य की अपेक्षा तीव्र हो जाती है।

चका चौंध दुनिया से दूर रहें

यह संसार माया के प्रभाव से ढका हुआ है, स्वादिष्ट भोजन, सुन्दर स्त्री-पुरुष, आरामदायक संसाधन, चमचमाते हुए भवन अथवा घर, अत्यधिक धन पाने का लालच आदि प्रकार के विषयों के प्रति आकर्षण व्यक्ति के मन को अपनी ओर खींचता है। और व्यक्ति इन सब प्रकार के सुख साधन को पाने का प्रयत्न करने लगता है। जब व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण नहीं होती तो उसे अत्यधिक क्रोध आने लगता है। जिससे व्यक्ति चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो जाता है, उसका मन सदैव अशांत बना रहता है। इसलिए मन को नियंत्रण में लाने के लिए इसे दुनिया की चकाचौंध से हटाकर जीवन के वास्तविक मूल्यों के प्रति केन्द्रित करना पड़ता है। 

सच्ची शिक्षा व सत्य के ज्ञान द्वारा अविद्या के बादलों को हटाकर जीवन की अनंत ऊर्जा को पहचानना होता है। जब व्यक्ति जीवन के लक्ष्य को पहचान कर उसे आचरण व व्यवहार में लाता है तो व परम सुख की अनुभूति करता है। ऐसा व्यक्ति मन एवं इन्द्रियों को जीत लेता है और उसका मन सदैव नियंत्रण में रहकर उसकी आज्ञा का पालन करता है।

मन क्या होता है और कैसे कार्य करता है?

मन एक जड़ पदार्थ है, ईश्वर ने इसका निर्माण प्रकृति तत्व से किया है। साधारण मनुष्य का मन उसकी इन्द्रियो का गुलाम होता है, किन्तु एक योगी का मन उसके अधीन होता है और मित्र की तरह व्यवहार करता है।

क्या मन व बुद्धि एक ही तत्व है अथवा अलग है?

नहीं, मन व बुद्धि दोनों अलग है। बुद्धि सही गलत में फर्क कर सकती है, परंतु मन नहीं। बुद्धि का प्रयोग कर के ही मन को नियंत्रण में लाया जाता है। जब मनुष्य का मन नियंत्रित हो जाता है तो वह मित्र की भांति अपने स्वामी आत्मा के आदेश का पालन करता है।

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